लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2776
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- सतत विकास के आर्थिक घटकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर -

सतत विकास के आर्थिक घटक

विकास बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध के बाद अपेक्षाकृत विकसित अमीर देशों की एक बड़ी चिंता का विषय बन गया, जबकि अधिकांश राष्ट्रों ने यू०के०, जापान, स्पेन और जर्मनी जैसी शाही ताकतों से आजादी हासिल कर ली थी। आर्थिक विकास दुनिया भर में एक लोकप्रिय नीति एजेंडा था और विकास अर्थशास्त्र विषय की शाखा के रूप में उभरा। यह सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों के साथ-साथ आर्थिक साधनों पर भी व्यापक रूप से ध्यान केन्द्रित करता हैं। विश्व स्तर पर, अधिकांश देशों ने जी०डी०पी० (Gross Domestic Product-GDP) और मानव विकास सूचकांक उपायों में प्रगति की है, हालांकि अफ्रीका में कुछ नकारात्मक वृद्धि भी हुई है। कुछ समस्याओं में निम्नलिखित निहित हैं-

(1) बढ़ती आय असमानताएँ और पर्यावरण पर विकास का नकारात्मक प्रभाव;

(2) मौजूदा सामाजिक संरचनाएँ।

विकास की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी और यह है पर्यावरणीय निम्नीकरण, लोगों का विस्थापन, संस्कृति और पारंपरिक स्थानों का नुकसान व क्षति। अधिकतम पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों (लागतों) ने आर्थिक लाभ को नकार दिया है। अब, लोग विकास के इन प्रतिकूल प्रभावों से अवगत हो रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप दुनिया भर में कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं। उद्योग और सरकारों पर दबाव ने उन्हें ऐसी नीति और कार्यनीति पर फिर से विचार करने के लिए प्रेरित किया है, जिससे सतत विकास संभव हो सकता है।

घातीय युग
(Exponential Era)

21वी सदीं में जलवायु परिवर्तन ही एक मात्र पर्यावरणीय चिंता का विषय नहीं है। अगले 30-40 वर्षों में दुनिया भर में आबादी को बड़े पैमाने पर तेजी से वृद्धि के कारण इससे भी बदतर समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। पानी और भोजन की कमी और गरीबी के कारण दुनिया के पारिस्थितिक तंत्र, प्रजातियाँ और महासागरों की स्थिति का नुकसान होगा। 21 वीं सदी विशेष रूप से वित्तीय क्षेत्र में तेजी से बदलाव की दुनिया है। दुनिया के एक कोने में होने वाली छोटी-सी भी घटना वैश्विक अर्थव्यवस्था में निर्बाध गिरावट (freefall) या अप्रत्याशित उछाल (unexpected boom) का कारण बन जाती है। तेल की कीमतों में लगातार उतार-चढ़ाव अर्थव्यवस्थाओं को गड़बड़ा देते हैं। इससे समाज पर भी प्रभाव पड़ता है। गरीब लोगों के आंकड़े, जो एक दिन में एक समय का भोजन नहीं जुटा पाते, वे हमें चौकाने वाले हैं और इस दिशा में किए जाने वाले प्रयास निष्फल रहे हैं। अमीरों और गरीबों के बीच चौंकाने वाली और बढ़ती असमानता गरीबी उन्मूलन की स्थिति को बदतर बना रही है। गरीबी सामाजिक और पर्यावरणी घटकों को समान रूप से प्रभावित करती हैं, क्योंकि गरीबों को सतत आजीविका नहीं मिल पाती है। वे प्राकृतिक संसाधनों-जैसे कि ईंधन के लिए लकड़ी, जीवित रहने के लिए मछली, आदि पर अधिक आश्रित होते हैं और पृथ्वी पर बोझ या बदलाव डालते हैं। इसके अतिरिक्त, इस नदी में घातीयता के अन्य क्षेत्र हैं, आतंकवाद, हिंसा, महामारी, एड्स, खाद्य सुरक्षा और परमाणु प्रसार।

उद्योग की भूमिका (Role of Industry)

बड़े निजी उद्योगों में प्रौद्योगिकी, ज्ञान, वित्त और राजनीतिक के क्षेत्रों से सुरक्षा व सेवाएँ प्राप्त करने का सामर्थ्य होता है, अतः ये सतत् विकास प्राप्त करने में अहम् भूमिका निभा सकते हैं। उनके पास ऐसे मानव संसाधनों को तैनात करने की गुंजाइश होती है, जो वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए सतत समाधान के बारे में सोच-विचार कर सकते हैं। लोगों को जितने अधिक सतत विकल्प मिलेंगे, वे उतने ही जागरूक होंगे और उन्हें ही चुनेंगे। वे अपने संगठनों को मुनाफा प्रदान करने के लिए समाधान तलाश सकते हैं और पारिस्थितिकी प्रणालियों को व्यवहार्य बनाए रखने में योगदान दे सकते हैं।

आर्थिक सततता
(Economic Sustainability)

सरकार और बाहरी ऋण के संचालनीय स्तर को बनाए रखने के लिए और कृषि या औद्योगिक उत्पादन को नुकसान पहुँचाने वाले चरम क्षेत्रीय असंतुलन से बचने के लिए किसी भी आर्थिक रूप से सतत प्रणाली को नियमित आधार पर वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करने में सक्षम होना चाहिए। मोटे तौर पर, सततता को आर्थिक दृष्टिकोण से समय के साथ अधिकतम कल्याण करने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। मानव कल्याण में भोजन, वस्त्र, आवास, परिवहन, स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाएँ आदि शामिल हैं यह परिभाषा आर्थिक स्थिरता की अवधारणा को एक औसत दर्जे के एकल-आयामी सूचक के रूप में स्पष्ट करती है, हालांकि न्यूनतावादी (सरलीकृत) दृष्टिकोण से इसमें कई जटिलताएँ हैं। नीचे दिए गए नवीकरणीय और गैर- नवीकरणीय संसाधनों के संबंध में प्राकृतिक पूँजी के संरक्षण के संदर्भ में एस०डी० का संचालन किया जा सकता है।

(i) नवीकरणीय संसाधन (Renewable Resources) - उपज (पैदावार) के स्तर को बनाए रखने के लिए संसाधन की खपत को सीमित किया जा सकता है। गैर-नवीकरणीयसंसाधनों के दोहन से प्राप्त लाभ (आय) को फिर से नवीकरणीय प्राकृतिक पूँजी में निवेश किया जाना चाहिए। ये तरीके प्राकृतिक पूँजी के सतत् भंडार को बनाए रखने में मदद करते हैं। एक अन्य दृष्टिकोण है प्राकृतिक संसाधनों के ह्रास पर आर्थिक विकास करना है। यह दृष्टिकोण संरक्षण के बारे में बात नहीं करता है, लेकिन इस तथ्य पर जोर देता है जैसे कि उदाहरण के लिए, यदि आर्थिक प्रगति का आर्थिक मूल्य, जंगलों को काटकर कारखानों का निर्माण करने से होने वाली क्षति यदि वन भूमि को खोने की क्षति से अधिक है, तो यह आर्थिक रूप से सतत हैं हालांकि, यह दृष्टिकोण उस सतत् विकास के साथ औचित्य नहीं रखता है, जिसकी इस ग्रह को आवश्यकता है। इस तरह, एक सुरक्षित न्यूनतम मानक का अनुप्रयोग प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में मदद कर सकता है। समाज प्राकृतिक संसाधनों के प्रभाव की जटिलता के बारे में नियम बना सकता है, जो क्षति और अपरिवर्तनीयता की सीमा से बाहर हो।

(ii) सरकार को आर्थिक सिद्धांत और नीति (Economy Theory and Policy) - में रखने के लिए निम्नलिखित तीन अनिवार्यताओं पर विचार करना चाहिए-

(1) नैतिक अनिवार्यताएँ;
(2) लोक निर्णयन; तथा
(3) सामाजिक मूल्यों का निर्माण।

आर्थिक सिद्धांत के अंतर्गत, बाजार और मूल्य निर्धारण की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन सामाजिक निर्णय लेने की प्रक्रिया द्वारा अंतिम लक्ष्य अर्जित करने की योजना बनाई जा सकती है। वर्तमान बाजारों में सतत और चक्रीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि देखी जा रही है।

(iii) चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy ) - एक चक्रीय अर्थव्यवस्था में, डिजाइन, उत्पादों और सामग्रियों द्वारा अपशिष्ट और प्रदूषण नहीं होता है। माल के उत्पादन के लिए प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग किया जाता है, जो प्राकृतिक प्रणालियों द्वारा पुनः उत्पादित होते हैं। इसमें हरित वित्तपोषण का उपयोग किया जाता है, जिसका अर्थ है कि सरकारें नवाचार का उपयोग करती हैं; महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों का पुनर्गठन करती है; मौजूदा पर्यावरणी योजनाओं में तेजी लाती है; आदि। चक्रीय अर्थव्यवस्था और सततता में यह भिन्नता है कि चक्रीय अर्थव्यवस्था तीन घटकों-सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण पर समग्र रूप से विचार करने की बजाय पर्यावरणीय निष्पादन में सुधार पर ध्यान केन्द्रित करती है, जबकि सततता सभी तीन पहलुओं को ध्यान में रखती हैं।

प्रत्येक साझेदार के लिए चक्रीय अर्थव्यवस्था की अपनी-अपनी सौ से अधिक परिभाषाएँ हैं, जिनके अर्थ भी भिन्न-भिन्न हैं, लेकिन उन सभी परिभाषाओं में सामान्य कारक तीन आर (3Rs) है। चक्रीय अर्थव्यवस्था आर के तीन सिद्धांतों को नियोजित करती है, जो हैं-कम करना (Reduce), पुन: उपयोग करना (Reuse) और पुनः चक्रण (Recycle) करना। 'कम करना' प्लास्टिक का कम उपयोग करने को निर्दिष्ट करता है; पुनः उपयोग उत्पादों को पुनः इस्तेमाल करना और उन्हें पुनः चक्रित करना है; 3 Rs की कार्यनीति के विभिन्न उदाहरण हैं जैसे कि अपने कपड़ों को निर्दिष्ट स्थानों में फेंकना, ताकि वहाँ उनको धोने, उनको कतरने-कटाने की प्रक्रिया द्वारा उन्हें नए कपड़ों का रूप देकर उनको पुनः चक्रित किया जा सके। यहीं बात मोबाइल फोनों के मामले में भी लागू की जा सकती है। मोबाइल के काम करने योग्य पुर्जों को सुरक्षित रखकर उनका इस्तेमाल नए फोन बनाने में किया जा सकता है।

अर्थव्यवस्था पर्यावरणीय रूप से जिम्मेदार हो सकती है और समाज को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है। मानव जाति के निरंतर अस्तित्व और कल्याण के लिए तीनों घटक परस्पर संबद्ध हैं। हर कोई विजयी होता है, अगर प्राकृतिक संसाधन संरक्षित हैं; अर्थव्यवस्था लचीली हो जाती है और शांति और मानव अधिकारों के रख-रखाव के कारण सामाजिक जीवन में सुधार होता है। जब समाज आर्थिक रूप से जीने व करने योग्य होते हैं, तो लोग पर्यावरण संबंधी चिंताओं, सरोकारों और सामाजिक कल्याण जैसे अन्य मुद्दों को बेहतर ढंग से समझते हैं इसलिए, आर्थिक सततता के निर्णय सबसे न्यायसंगत और यथासंभव वित्तीय रूप से ठोस रूप से लिए जाते हैं।

सतत् आजीविका के मूल सिद्धान्त
(Core Principles of Sustainable Livelihood)

एक आजीविका तभी सतत होती है, जब वह प्राकृतिक संसाधनों के आधार को क्षति पहुँचाए बिना दबाव और झटके का सामना कर सकती है और पुनः उत्थान कर सकती है और वर्तमान व भविष्य दोनों के लिए अपनी क्षमताओं और परिसंपत्तियों को बढ़ा सकती है। माल और सेवाओं को वितरित करने वाले प्रभावी स्थानीय संस्थानों को विकसित करना महत्वपूर्ण है, जिसमें सरकारी एजेंसियाँ, नागरिक संगठन और निजी क्षेत्र शामिल हों। सामुदायिक क्षमता-निर्माण और संस्थागत मजबूती सतत आजीविका सृजित करने के दो प्रमुख प्रयास हैं। सतत् विकास के लक्ष्य या एस०डी०जी० की उपलब्धि के कार्यक्रम के तहत यह सिफारिश की गई है कि एक सतत आजीविका ढांचे के लिए हर सरकार द्वारा समग्र रूप से योजना तैयार की जानी चाहिए।

अंतर्राष्ट्रीय सतत आजीविका विकास विभाग द्वारा एक गरीबी- केन्द्रित विकास का प्रस्ताव तैयार किया है, जो निम्नलिखित मूल सिद्धान्तों पर आधारित है-

(1) जन - केन्द्रित (People centred ) - निम्नलिखित मुद्दों को ध्यान में रखते हुए अधिकांश लोगों से सरोकार रखने वाले मुद्दों के बारे में जानकारी होनी चाहिए-

(a) लोगों को विभिन्न समूहों के बीच भिन्नताएँ;
(b) लोगों की संस्कृति के अनुरूप सतत आजीविका के ढाँचे का संरेखण;
(c) लोगों की अनुकूलन कर पाने की क्षमता।

(2) अनुक्रियाशील और सहभागी (Responsive and Participatory) - आजीविका की प्राथमिकताएँ निर्धारित करने की प्रक्रिया में समुदाय को इस कार्य में भागीदार बनाया जाना चाहिए। बाहरी एजेंसियाँ - जो सतत आजीविका के ढांचे को कार्यान्वित करती हैं, उन्हें गरीबों के प्रति अनुक्रियाशील होने के लिए स्थापित प्रक्रियाओं का उपयोग करना चाहिए।


(3) बहु-स्तरीय (Multi-level) - गरीबी उन्मूलन या कम करना एक विशाल कार्य है, जिसे केवल सूक्ष्म और स्थूल स्तरों पर ही किया जा सकता है। सूक्ष्म स्तर में ऐसी गतिविधियाँ शामिल होती हैं, जो सतत आजीविका प्रदान करती हैं, जबकि स्थूल स्तर में ऐसी संरचनाएँ और प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं, जो लोगों को तद्नुसार अपनी-अपनी योग्यताओं और क्षमताओं का निर्माण करने में सक्षम बनाती हैं।

(4) साझेदारी (Partnership) - सार्वजनिक या लोक क्षेत्र अकेला अपने दम पर सतत आजीविका के लिए योजना तैयार करने में सफल नहीं हो सकता है, बल्कि इसे निजी क्षेत्र और गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर काम करना होगा।

(5) गतिशील (Dynamic) - यह तेजी से बदलती दुनिया का युग है और सरकारी एजेंसियों को ऐसे परिवर्तनों के प्रति अनुक्रिया करने के लिए गतिशील व सक्रिय होना चाहिए।

उन्हें लोगों की बदलती जरूरतों को ध्यान में रखना होगा और इसके लिए ढाँचे और नीतियों की निरंतर जाँच करना व उनमें संशोधन की आवश्यकता है।

(6) सतत (Sustainable) - चूँकि अध्ययन का विषय सतत आजीविका है, इसलिए 'सतत' शब्द पर ध्यान केन्द्रित होना जरूरी है। चार प्रमुख आयाम हैं, जो आजीविका को सतत बनाते हैं, ये आयाम है- आर्थिक, संस्थागत, सामाजिक और पर्यावरणीय आयाम।

सतत आजीविका के लिए रूपरेखा बनाने में उपरोक्त सिद्धांतों को ध्यान में रखा जाना चाहिए-

सतत निगमीय जिम्मेदारी
(Sustainable Corporate Responsibility)

निजी क्षेत्र अपनी सामाजिक कॉर्पोरेट जिम्मेदारी के एक भाग के रूप में सतत नीतियों को लागू करके सतत् विकास की दिशा में काम करने का एक प्रमुख क्षेत्र हो सकता है। स्थानीय समुदाय को ऐसे कार्यक्रमों और गतिविधियों में संलग्न किया जा सकता है, जिनका सरोकार पृथ्वी ग्रह का स्थायित्व हो, उदाहरण के लिए, अपने क्षेत्रों में झीलों और नदियों की सफाई अभियान या पेड़ों का रोपण करना। ये किसी भी समारोह, प्रदर्शनी, मेलों, इत्यादि को प्रायोजित करके, उस समारोह में अपने बैनर (Banner) लगाकार निजी क्षेत्र प्रचार अभियानों द्वारा अच्छी छवि या सद्भावना का लाभ उठा सकते हैं। जलवायु परिवर्तन और स्थिरता के बारे में कार्यनीतियाँ बनाकर कॉर्पोरेट द्वारा सामाजिक जिम्मेदारी के परोपकारी पहलू का लाभ उठाया जा सकता है।

विनियम और भ्रष्टाचार
(Regulations and Corruption)

सरकारें पर्यावरण से संबंधित कानून और नियम तो बनाती हैं, लेकिन अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं के कारण उनमें कानून या नियम के प्रवर्तन की क्षमता नहीं होती है। भ्रष्टाचार भी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए जाने वाले प्रयासों में बाधा डालता है, क्योंकि यह उद्योगपतियों को परमिट और लाइसेंस सुलभ कराने में मदद करता है। भ्रष्टाचार वैश्विक सतत आपूर्ति श्रृंखला में बाधा उत्पन्न करता है, जिसके परिणामस्वरूप नकली डेटा और सतत तैयार उत्पाद की आपूर्ति में व्यवधान होता है। उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य क्षेत्र में, समाज के गरीब वर्गों से संबंधित रोगियों को मुफ्त में दी जाने वाली दवाएँ काले बाजार में बेची जाती हैं, जबकि निर्धन वर्ग के रोगियों को अपनी जेब से दवाएँ खरीदनी पड़ती हैं, जिसे खरीदने का उनमें सामर्थ्य नहीं होता। यदि, सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में भ्रष्टाचार पर तत्काल ध्यान नहीं दिया गया, तो स्वास्थ्य और कल्याण खतरे में हैं।

भ्रष्टाचार के खिलाफ यथोचित कार्यवाही न होने के कारण, सतत् विकास के अन्य लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में प्रगति बेहद सीमित होती जा रही है, विशेष रूप से, आर्थिक विकास के क्षेत्रों में। जिन देशों में पारदर्शिता, जवाबदेही और संस्थान कमजोर हैं, वहाँ भ्रष्टाचार अधिक पनपता है। यह भ्रष्टाचार सार्वजनिक लोक संस्थानों में लोगों की वैधता और विश्वास को कम करता है, और सार्वजनिक या लोक सेवाओं और वस्तुओं के वितरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। ये स्थितियाँ आर्थिक स्थिरता की उपलब्धि के लिए प्रासंगिक हैं। कई अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों-जैसे एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank - ADB), आर्थिक समन्वय व विकास के लिए संगठन, ओ०ई०सी०डी० ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल और विश्व आर्थिक मंच (Organisation for Economic Coordination and Development- OECD, Transparency International and World Economic Forum) भ्रष्टाचार विरोधी कार्यनीति तैयार की है। उन्होंने भ्रष्टाचार के स्तर पर देशों को श्रेणीबद्ध करने के लिए भ्रष्टाचार की जानकारी से संबंधित सूचकांक विकसित किया है, ताकि उनपे अपनी भ्रष्टाचार विरोधी नीतियों और कार्यनीतियों को लागू करने के लिए दबाव डाला जा सके।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्रादेशिक भूगोल में प्रदेश (Region) की संकल्पना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  3. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश को परिभाषित कीजिए।
  4. प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश से क्या आशय है?
  6. प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
  7. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण को समझाते हुए इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के जलवायु सम्बन्धी आधार कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित मेकफारलेन एवं डडले स्टाम्प के दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  11. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के भू-राजनीति आधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  12. प्रश्न- डॉ० काजी सैयदउद्दीन अहमद का क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण क्या था?
  13. प्रश्न- प्रो० स्पेट के क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित पूर्व दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य भी बताइए।
  16. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता क्यों है? तर्क सहित समझाइए।
  17. प्रश्न- प्राचीन भारत में नियोजन पद्धतियों पर लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- नियोजन तथा आर्थिक नियोजन से आपका क्या आशय है?
  19. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन में भूगोल की भूमिका पर एक निबन्ध लिखो।
  20. प्रश्न- हिमालय पर्वतीय प्रदेश को कितने मेसो प्रदेशों में बांटा जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- भारतीय प्रायद्वीपीय उच्च भूमि प्रदेश का मेसो विभाजन प्रस्तुत कीजिए।
  22. प्रश्न- भारतीय तट व द्वीपसमूह को किस प्रकार मेसो प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- "हिमालय की नदियाँ और हिमनद" पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- दक्षिणी भारत की नदियों का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- पूर्वी हिमालय प्रदेश का संसाधन प्रदेश के रूप में वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- भारत में गंगा के मध्यवर्ती मैदान भौगोलिक प्रदेश पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
  27. प्रश्न- भारत के उत्तरी विशाल मैदानों की उत्पत्ति, महत्व एवं स्थलाकृति पर विस्तृत लेख लिखिए।
  28. प्रश्न- मध्य गंगा के मैदान के भौगोलिक प्रदेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- छोटा नागपुर का पठार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- प्रादेशिक दृष्टिकोण के संदर्भ में थार के मरुस्थल की उत्पत्ति, महत्व एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- क्षेत्रीय दृष्टिकोण के महत्व से लद्दाख पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  32. प्रश्न- राजस्थान के मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  33. प्रश्न- विकास की अवधारणा को समझाइये |
  34. प्रश्न- विकास के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- सतत् विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- सतत् विकास के स्वरूप को समझाइये |
  37. प्रश्न- सतत् विकास के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- सतत् विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्त एवं विशेषताओं पर विस्तृत लेख लिखिए।
  39. प्रश्न- अल्प विकास की प्रकृति के विभिन्न दृष्टिकोण समझाइए।
  40. प्रश्न- अल्प विकास और अल्पविकसित से आपका क्या आशय है? गुण्डरफ्रैंक ने अल्पविकास के क्या कारण बनाए है?
  41. प्रश्न- विकास के विभिन्न दृष्टिकोणों पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
  42. प्रश्न- सतत् विकास से आप क्या समझते हैं?
  43. प्रश्न- सतत् विकास के लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
  44. प्रश्न- आधुनिकीकरण सिद्धान्त की आलोचना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  45. प्रश्न- अविकसितता का विकास से क्या तात्पर्य है?
  46. प्रश्न- विकास के आधुनिकीकरण के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  47. प्रश्न- डॉ० गुन्नार मिर्डल के अल्प विकास मॉडल पर विस्तृत लेख लिखिए।
  48. प्रश्न- अल्प विकास मॉडल विकास ध्रुव सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा प्रादेशिक नियोजन में इसकी सार्थकता को समझाइये।
  49. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के प्रतिक्षिप्त प्रभाव सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- विकास विरोधी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  51. प्रश्न- पेरौक्स के ध्रुव सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  52. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता की अवधारणा को समझाइये
  54. प्रश्न- विकास के संकेतकों पर टिप्पणी लिखिए।
  55. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय असंतुलन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता निवारण के उपाय क्या हो सकते हैं?
  57. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमताओं के कारण बताइये। .
  58. प्रश्न- संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिए कुछ सुझाव दीजिये।
  59. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन का मापन किस प्रकार किया जा सकता है?
  60. प्रश्न- क्षेत्रीय असमानता के सामाजिक संकेतक कौन से हैं?
  61. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन के क्या परिणाम हो सकते हैं?
  62. प्रश्न- आर्थिक अभिवृद्धि कार्यक्रमों में सतत विकास कैसे शामिल किया जा सकता है?
  63. प्रश्न- सतत जीविका से आप क्या समझते हैं? एक राष्ट्र इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है? विस्तारपूर्वक समझाइये |
  64. प्रश्न- एक देश की प्रकृति के साथ सामंजस्य से जीने की चाह के मार्ग में कौन-सी समस्याएँ आती हैं?
  65. प्रश्न- सतत विकास के सामाजिक घटकों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- सतत विकास के आर्थिक घटकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  67. प्रश्न- सतत् विकास के लिए यथास्थिति दृष्टिकोण के बारे में समझाइये |
  68. प्रश्न- सतत विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के बारे में लिखिए।
  69. प्रश्न- विकास और पर्यावरण के बीच क्या संबंध है?
  70. प्रश्न- सतत विकास के लिए सामुदायिक क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के आयामों को समझाइये |
  71. प्रश्न- सतत आजीविका के लिए मानव विकास दृष्टिकोण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  72. प्रश्न- सतत विकास के लिए हरित लेखा दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
  73. प्रश्न- विकास का अर्थ स्पष्ट रूप से समझाइये |
  74. प्रश्न- स्थानीय नियोजन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- भारत में नियोजन के विभिन्न स्तर कौन से है? वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- नियोजन के आधार एवं आयाम कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  78. प्रश्न- आर्थिक विकास में नियोजन क्यों आवश्यक है?
  79. प्रश्न- भारत में नियोजन अनुभव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय नियोजन की विफलताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- नियोजन की चुनौतियां और आवश्यकताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- बहुस्तरीय नियोजन क्या है? वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
  84. प्रश्न- ग्रामीण पुनर्निर्माण में ग्राम पंचायतों के योगदान की विवेचना कीजिये।
  85. प्रश्न- संविधान के 72वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में जो परिवर्तन किये गये हैं उनका उल्लेख कीजिये।
  86. प्रश्न- पंचायती राज की समस्याओं का विवेचन कीजिये। पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव भी दीजिये।
  87. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यक उपागम की व्याख्या कीजिये।
  88. प्रश्न- साझा न्यूनतम कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।
  89. प्रश्न- भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु क्या उपाय किये गये हैं?
  90. प्रश्न- भारत में तीव्र नगरीयकरण के प्रतिरूप और समस्याओं की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
  92. प्रश्न- प्राचीन व आधुनिक पंचायतों में क्या समानता और अन्तर है?
  93. प्रश्न- पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव दीजिये।
  94. प्रश्न- भारत में प्रादेशिक नियोजन के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के महत्व का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के सम्मिलित कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- भारत के नगरीय क्षेत्रों के प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book